जहां की गुर्बत में सुकुं नहीं आयेगा
गम-ए-तौहीन से कुबुल नहीं आयेगा
मकलुल की फितरत है ऐ काफीर
दिमाग का दही बनेगा
पर ये शेर समझ नहीं आयेगा ! ...
आंबे पूर्णिमा...
9 years ago
From today, painting is dead!
जहां की गुर्बत में सुकुं नहीं आयेगा
गम-ए-तौहीन से कुबुल नहीं आयेगा
मकलुल की फितरत है ऐ काफीर
दिमाग का दही बनेगा
पर ये शेर समझ नहीं आयेगा ! ...
1 comments:
दिमाग का दही बनाया
फिर भी शेर समझ न आया
बढ़िया संदेश है :)
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