Wednesday, 18 June 2008

अर्ज किया है ....

जहां की गुर्बत में सुकुं नहीं आयेगा
गम-ए-तौहीन से कुबुल नहीं आयेगा
मकलुल की फितरत है ऐ काफीर
दिमाग का दही बनेगा
पर ये शेर समझ नहीं आयेगा ! ...

1 comments:

दिमाग का दही बनाया
फिर भी शेर समझ न आया

बढ़िया संदेश है :)